Marital Rape | पत्नी से किया गया सेक्स जबरदस्ती हुआ था या फिर रजामंदी से, बेडरूम से बाहर कैसे साबित होगी ये बात, मैरिटेल रेप के दोनो पहलू ऐसे समझिए

नई दिल्ली: केरल हाई कोर्ट ने हाल ही में मैरिटल रेप को लेकर एक फैसला दिया, जिसकी काफी चर्चा हुई। कोर्ट ने कहा कि मैरिटल रेप तलाक का मजबूत आधार बनता है। कोर्ट ने आगे जो टिप्पणी की, उस पर बहस छिड़ी हुई है। HC ने साफ-साफ कहा है कि पत्नी की मर्जी के खिलाफ संबंध बनाना मैरिटल रेप है। इस पर सजा तो नहीं हो सकती, लेकिन यह मानसिक और शारीरिक क्रूरता के दायरे में आता है। कानून में क्रूरता को पहले से तलाक का आधार माना गया है। दरअसल, भारतीय समाज के एक बड़े हिस्से में आज भी पत्नी के शरीर पर पति का हक माना जाता है। इस कथित हक के हिसाब से लोग अक्सर मान लेते हैं कि उन्हें पत्नी के साथ उसकी मर्जी के बगैर भी सेक्स करने का अधिकार है। ऐसे में सवाल यह है कि क्या अपनी पत्नी से रेप करना अपराध होना चाहिए? सवाल यह भी उठता है कि आखिर देश के कानूनों को मैरिटल रेप की अनदेखी करने की छूट कब तक मिलेगी? आइए समझते हैं इस बेहद संवेदनशील और विवादित मसले के पक्ष और विपक्ष में कानूनी विशेषज्ञ क्या कहते हैं।

सबसे पहले कानून की बात
आईपीसी का सेक्शन 375 रेप को परिभाषित करता है। इसमें यह कहते हुए वैवाहिक बलात्कार को अपवाद में रखा गया है, ‘अपनी पत्नी के साथ व्यक्ति का शारीरिक संबंध बनाना रेप नहीं है, पत्नी की उम्र 15 साल से कम नहीं होनी चाहिए।’ वहीं, दुनिया के देशों की बात करें तो 1932 में पोलैंड पहला ऐसा देश था जिसने इसे दंडनीय अपराध घोषित किया। उसके बाद से अब तक 50 से ज्यादा देश उसी राह पर चले हैं।
जस्टिस जेएस वर्मा कमेटी ने 2013 में मैरिटल रेप इम्युनिटी को खत्म करने की सिफारिश की थी लेकिन ऐसा हुआ नहीं। इस मामले में कोर्ट का रुख विरोधाभासी रहा है।

पक्ष में क्या तर्क
समाजशास्त्री और ‘पब्लिक सीक्रेट्स ऑफ लॉ: रेप ट्रायल्स इन इंडिया’ की लेखक प्रतीक्षा बक्शी इस डिबेट में मैरिटल रेप को अपराध मानने के पक्ष में हैं। वह कहती हैं कि मैरिटल रेप का अपवाद हमारे कानून और समाज में पितृसत्तात्मक सोच को प्रदर्शित करता है। औपनिवेशिक कानून लागू होने के बाद, जब पहली बार अपवाद को जोड़ा गया तो नीति निर्माताओं ने चर्चा की थी कि क्या कानून को रेप करने वाले पति को बचाना चाहिए या शादी में रेप को बर्दाश्त करने की पितृसत्तात्मक प्रवृत्ति को यह अपवाद वैधता देता है।

पत्नी से रेप में अपवाद कैसा?
क्या भारतीय संस्कृति के लिए मैरिटल रेप का मामला वेस्टर्न कॉन्सेप्ट है? अगर अपवाद खत्म कर दिया जाता है तो क्या शादीशुदा जिंदगी बिखर जाएगी या रेप की गई पत्नियों की शिकायतों का निवारण होगा। शायद, कुछ नहीं होगा। संवैधानिक रूप से कहा जाए, रेप में अपवाद का बचाव इसलिए नहीं किया जा सकता कि यह पत्नियों के अधिकारों को अमान्य ठहराता है। यह पत्नियों और गैर-पत्नियों के बीच अनुचित रूप से भेद करता है। यह महिला के प्राइवेसी, स्वास्थ्य, जीवन और आजादी के अधिकारों का हनन करता है। यह अपवाद एक संदेश देता है कि कानूनी रूप से समर्थन मिलने के कारण पति पत्नि से रेप कर सकता है। यह शादीशुदा जिंदगी में हिंसा को सामाजिक रूप से बर्दाश्त करने की प्रवृत्ति से विवाह की अवधारणा को कमजोर करता है। प्रतीक्षा बक्शी का कहना है कि इससे एक इंटरजनरेशनल ट्रामा पैदा होता है और हिंसक पति और पीड़ित पत्नी से जन्मी संतान को भी नुकसान होता है। रेप के कानून में यह अपवाद शादीशुदा महिला को लेकर भेदभावपूर्ण रवैया अपनाता है।

15 साल की उम्र का क्या मामला है
लोग यह भी कहते हैं कि शादी बचाने के लिए रेप होते देना कितना सही है। आईपीसी की धारा-375 में मैरिटल रेप यानी पति द्वारा 15 साल से ज्यादा उम्र की पत्नी के साथ बनाए गए संबंध को रेप का अपवाद माना गया है। कानून कहता है कि अगर कोई शख्स किसी महिला के साथ उसकी मर्जी के खिलाफ संबंध बनाता है तो वह रेप होगा। महिला की उम्र अगर 18 साल से कम है तो उसकी सहमति के मायने नहीं हैं। यानी 18 साल से कम उम्र की लड़की के साथ उसकी सहमति से बनाए गए संबंध भी रेप की श्रेणी में आएंगे। इसी तरह अगर कोई लड़की 15 साल से कम उम्र की है और उसके पति ने उससे संबंध बनाए तो वह रेप होगा। लेकिन पत्नी नाबालिग है और उम्र 15 साल से ज्यादा तो उसके साथ संबंध बनाना रेप के दायरे में नहीं आएगा।

मैरिटल रेप के खिलाफ क्या कहते हैं एक्सपर्ट
सुप्रीम कोर्ट की वकील मोनिका अरोड़ा बिल्कुल अलग सोच रखती हैं। उनका कहना है कि यह तय करना असंभव होगा कि बंद कमरे में पत्नी ने अपनी सहमति कब वापस ले ली। उन्होंने कहा कि IPC के सेक्शन 375 के तहत रेप तो परिभाषित किया गया है लेकिन मैरिटल रेप की परिभाषा नहीं है। एक व्यक्ति की पत्नी के लिए मैरिटल रेप हो सकता है लेकिन दूसरों के लिए नहीं। अपराध की बात करने से पहले व्यापक स्तर पर समाज की सहमति और चर्चा के बाद मैरिटल रेप और मैरिटल नॉन-रेप को परिभाषित करना जरूरी है।

वह आगे कहती हैं कि बेहद सावधानी से यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि मैरिटल रेप विवाह के बंधन और पवित्रता को नुकसान न पहुंचाए या पति को प्रताड़ित करने का एक आसान तरीका न बन जाए। सुप्रीम कोर्ट और कई हाई कोर्ट की ओर से पहले ही कहा जा चुका है कि आईपीसी के सेक्शन 498ए का दुरुपयोग बढ़ा है। अगर पत्नी के लिए पति की प्रताड़ना की बात की जाए तो कानून में पहले से इसके उपाय हैं।

में मैरिटल रेप की बात करें तो बड़ा सवाल यह है कि वह क्या तथ्य होगा जिस पर कोर्ट भरोसा करेगा? पीठ, छाती या प्राइवेट पार्ट पर चोट के निशान बताने वाले मेडिकल तथ्य बलात्कार के आरोप को पुख्ता करने के सबूत समझे जाते हैं। लेकिन ये सबूत मैरिटल रेप के आरोपों के मामले में बेकार हो जाते हैं। बेडरूम में एक साथ घुसने के बाद यह तय करना असंभव होगा कि पत्नी ने अपनी सहमति कब वापस ले ली।

अगर पति के अपनी पत्नी से करीबी संबंध मैरिटल रेप की श्रेणी में आने लगे तो मैरिटल रेप है या नहीं, इसका फैसला करना काफी मुश्किल होगा। ऐसे मामले में पत्नी का अकेले बयान ही आरोपी को दोषी साबित करने के लिए पर्याप्त होगा।

आंकड़े बताते हैं कि देश में शादी करने वाली 15 से 49 साल के बीच की हर तीन में से एक महिला पति की हिंसा का शिकार होने की बात कहती है। दुनिया में सिर्फ 36 देश ऐसे हैं, जहां मैरिटल रेप को कानूनन अपराध नहीं माना जाता। ऐसे में कानून में वैवाहिक रिश्ते में होते हुए भी पीड़ित पक्ष को संरक्षण देने की मांग उठती रहती है।

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