DHARM | कल है हरितालिका तीज, जानिए कैसे करें पूजा, इन 5 बातों का रखें खास ख्याल

नई दिल्ली: हिन्दू पंचांग के अनुसार, हरतालिका तीज व्रत भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को रखा जाता है। इस साल यह व्रत 9 सितंबर गुरुवार को रखा जाएगा। विवाहित और अविवाहित महिलाओं के लिए यह व्रत महत्वपूर्ण माना जाता है। जहां सुहागिन महिलाएं इस व्रत को अखंड सौभाग्यवती और दांपत्य जीवन को सुखी बनाने की कामना से करती हैं तो वहीं कुंवारी कन्याएं योग्य वर प्राप्ति के लिए इस व्रत को करती हैं।

इस दिन मां पार्वती और भगवान शिव की आराधना की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि जो महिलाएं यह व्रत सच्चे मन से करती हैं मां गौरा उनकी कामना को पूर्ण करती हैं। यह व्रत विधि-विधान से किया जाता है। दरअसल हरतालिका तीज व्रत निर्जल रखा जाता है। इसलिए यह व्रत कठिन व्रतों में से एक माना जाता है। व्रत रखने के दौरान कुछ नियमों का पालन करना होता है। कई बार महिलाएं इसे भूल जाती हैं। जिसे व्रत करने के बाद भी उसका फल नहीं मिल पाता है।
आइए जानते हैं व्रत नियम
तीज का व्रत रखने वाली महिलाओं को अपने गुस्से पर काबू रखना चाहिए। अपने गुस्से को शांत रखने के लिए महिलाएं अपने हाथों पर मेंहदी लगाती हैं। जिससे मन शांत रहता है। 
व्रत करने वाली महिलाओं को अपने मन में किसी तरह का खोट नहीं लाना चाहिए। किसी के प्रति गलत भावना न लाएं। किसी को बुरा भला न कहें। अपना मन एकदम शुद्ध-सात्विक और कोमल रखें।  
मान्यता है कि व्रत रखने वाली महिलाओं को रात को सोना नहीं चाहिए। पूरी रात जगकर महिलाओं के साथ मिलकर भजन कीर्तन करना चाहिए। अगर कोई महिला रात की नींद लेती है तो ऐसी मान्यता है कि वह अगले जन्म अजगर का जन्म लेती है।
इस दिन घर के बुजुर्गों को किसी तरह से नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए और उन्हें दुखी नहीं करना चाहिए। ऐसा करने वाले लोगों को अशुभ फल मिलता है। 
व्रत को विधिवत् इस व्रत का पालन करना चाहिए। विधिनुसार पूजा करें और हरतालिका तीज व्रत कथा का पाठ करें या फिर इस कथा को सुनें। व्रत कथा का श्रवण या पाठन इस व्रत में आवश्यक माना जाता है। 

हरतालिका तीज सुहागिन महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है। इस दिन महिलाएं अखंड सौभाग्य और अपने वैवाहिक जीवन को सुखी बनाने के लिए व्रत रखती हैं। इस व्रत में महिलाएं माता गौरी से सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद मांगती हैं। दरअसल यह व्रत निर्जल रखा जाता है। इसी कारण यह व्रत कठिन व्रतों में से एक माना जाता है। वहीं कुंवारी कन्याएं भी हरतालिका तीज व्रत रखती हैं।

उनके द्वारा यह व्रत सुयोग्य वर की प्राप्ति के लिए रखा है। हरतालिका तीज व्रत के लिए मायके से महिलाओं के लिए श्रृंगार का समान, मिठाई, फल और कपड़े भेजे जाते हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार, हरतालिका तीज व्रत भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हर साल रखा जाता है। इस साल यह व्रत 9 सितंबर गुरुवार को रखा जाएगा। आइए जातने हैं हरतालिका तीज व्रत का शुभ मुहूर्त, व्रत विधि और कथा के बारे में।

हरतालिका तीज मुहूर्त
तृतीया तिथि प्रारंभ – 8 सितंबर दिन बुधवार को तड़के 3 बजकर 59 से
तृतीया तिथि समाप्त – 9 सितंबर गुरुवार की रात्रि 2 बजकर 14 मिनट तक
प्रातःकाल पूजा का मुहूर्त – 9 सितंबर गुरुवार को सुबह 06 बजकर 03 मिनट से सुबह 08 बजकर 33 मिनट
प्रदोष काल पूजा मुहूर्त – 9 सितंबर गुरुवार को शाम को 06 बजकर 33 मिनट से रात 08 बजकर 51 मिनट तक

हरतालिका तीज पूजा विधि
सुबह जल्दी उठें और स्नानादि कर स्वच्छ वस्त्र पहनें।
अब बालू रेत से भगवान गणेश, शिव जी और माता पार्वती की प्रतिमा बनाएं। 
एक चौकी पर अक्षत (चावल) से अष्टदल कमल की आकृति बनाएं।
एक कलश में जल भरकर उसमें सुपारी, अक्षत, सिक्के डालें।
उस कलश की स्थापना अष्टदल कमल की आकृति पर करें।
कलश के ऊपर आम के पत्ते लगाकर नारियल रखें। 
चौकी पर पान के पत्तों पर चावल रखें।
माता पार्वती, गणेश जी, और भगवान शिव को तिलक लगाएं। 
घी का दीपक, धूप जलाएं।
उसके बाद भगवान शिव को उनके प्रिय बेलपत्र धतूरा भांग शमी के पत्ते आदि अर्पित करें।
माता पार्वती को फूल माला चढ़ाएं गणेश जी को दूर्वा अर्पित करें।
भगवान गणेश, माता पार्वती को पीले चावल और शिव जी को सफेद चावल अर्पित करें
पार्वती जी को शृंगार का सामान भी अवश्य अर्पित करें।
भगवान शिव औऱ गणेश जी को जनेऊ अर्पित करें। और देवताओं को कलावा (मौली) चढ़ाएं।
हरितालिका तीज की कथा सुनें। 
पूरी पूजा विधिवत् कर लेने के बाद अंत में मिष्ठान आदि का भोग लगाएं और आरती करें।  

चंद्रमा को अर्घ्य देने की विधि
तीज पर संध्या को पूजा करने के बाद चंद्रमा को अर्ध्य दिया जाता है। फिर उन्हें भी रोली, अक्षत और मौली अर्पित करें। चांदी की अंगूठी और गेंहू के दानों को हाथ में लेकर चंद्रमा के अर्ध्य देते हुए अपने स्थान पर खड़े होकर परिक्रमा करें। 

हरतालिका तीज व्रत कथा
हरतालिका का शाब्दिक अर्थ की बात करें तो यह दो शब्दों से मिलकर बना है हरत और आलिका, हरत का अर्थ होता है अपहरण और आलिका अर्थात् सहेली, इस संबंध में एक पौराणिक कथा मिलती है जिसके अनुसार पार्वती जी की सखियां उनका अपहरण करके जंगल में ले गई थी। ताकि पार्वती जी के पिता उनका विवाह इच्छा के विरुद्ध भगवान विष्णु से न कर दें। अपनी सखियों की सलाह से पार्वती जी ने घने वन में एक गुफा में भगवान शिव की अराधना की। भाद्रपद तृतीया शुक्ल के दिन हस्त नक्षत्र में पार्वती जी ने मिट्टी से शिवलिंग बनाकर विधिवत पूजा की और रातभर जागरण किया। पार्वती जी के तप से खुश होकर भगवान शिव ने माता पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया था।

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