रायपुर: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने सोमवार को आरक्षण पर बड़ा फैसला देते हुए राज्य के लोक सेवा आरक्षण अधिनियम को रद्द कर दिया है। इसकी वजह से अनुसूचित जनजाति का आरक्षण 32% से घटकर 20% पर आ गया है। वहीं अनुसूचित जाति का आरक्षण 13% से बढ़कर 16% और अन्य पिछड़ा वर्ग का आरक्षण 14% हो गया है। इसके सामाजिक-राजनीतिक प्रभाव की वजह से प्रदेश का राजनीतिक माहौल गर्म है। इधर, राज्य सरकार ने इस फैसले को सर्वोच्च न्यायालय(सुप्रीम कोर्ट) में चुनौती देने का निर्णय लिया है। वहीं सर्व आदिवासी समाज भी अपील दाखिल करने की तैयारी कर रहा है।
अधिकारियों ने कहा, राज्य सरकार ने इस फैसले से असहमत होते हुए यह निर्णय लिया है कि इस मामले को सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष अपील के माध्यम से प्रस्तुत किया जाएगा। राज्य सरकार का यह मानना है कि वर्ष 2012 में तत्कालीन सरकार ने इस मामले में समुचित रूप से तथ्य पेश नहीं किए थे। इसके बाद भी छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण प्रतिशत को देखते हुए राज्य सरकार इस फैसले से पूरी तरह असहमत है। राज्य सरकार का यह मानना है, इस निर्णय से राज्य के आरक्षित वर्ग में समुचित विकास का मार्ग रुकेगा।
बालोद सर्व आदिवासी समाज के एक प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से दल्लीराजहरा के विश्राम गृह में मुलाकात की। इसमें बालोद सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष उमेदी राम गंगराले, पूर्व विधायक जनकलाल ठाकुर, गणेश राम ओटी, तुकाराम कोर्राम, प्रेम कुंजाम आदि शामिल थे। उन्होंने उच्च न्यायालय( हाईकोर्ट) द्वारा अनुसूचित जनजाति के आरक्षण से संबंधित फैसले पर पुनर्विचार हेतु लीगल टीम गठित करने की मांग रखी। मुख्यमंत्री ने आदिवासी समाज के विकास और हितों के संरक्षण के लिए सभी आवश्यक कदम उठाने आश्वस्त किया।
दो-तीन दिनों में आदिवासी समाज की बैठक होगी
छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज पोटाई धड़े के बी.एस. रावटे ने कहा, उच्च न्यायालय के फैसले ने समाज की चिंता बढ़ा दी है। संगठन में लगातार बातचीत हो रही है। दो-तीन दिनों में समाज की बैठक बुलाकर फैसले के बिंदुओं पर विस्तृत चर्चा होगी। यह समाज के व्यापक हित का सवाल है। हम जल्दी ही कानूनी लड़ाई को सर्वोच्च न्यायालय में कैसे लड़ना है उसपर कोई निर्णय कर लेंगे। समाज की तरफ से भी इस फैसले के खिलाफ अपील दायर की जाएगी।
भाजपा ने राज्य सरकार पर लगाया अगंभीर होने का आरोप
भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने उच्च न्यायालय के निर्णय को कांग्रेस सरकार की बड़ी विफलता बताया है। उन्होंने कहा, इस सरकार ने विषय को गंभीरता से नहीं लिया। हमारी सरकार आरक्षण के मुद्दे पर काफी गंभीर थी और हमने फैसला भी लिया था। लेकिन कांग्रेस सरकार ने इस महत्वपूर्ण मामले में पर्याप्त संवेदनशीलता नहीं दिखाई। सरकार सही तरीके से पक्ष नहीं रख पाई, जिससे आरक्षण कम हो गया। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने कहा, कांग्रेस सरकार ने यदि अदालत में मजबूती से पक्ष रखा होता तो यह स्थिति नहीं होती। कांग्रेस की नीयत में खोट है। यह उसकी सरकार की अगंभीरता से प्रमाणित हो गया है।