रायपुर: पंजाब, राजस्थान की तरह ही कांग्रेस के लिए छत्तीसगढ़ भी अब एक नया सिरदर्द हो गया है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के बीच ‘छत्तीस’ के सियासी आंकड़े ने कांग्रेस को पूरी तरह से उलझा दिया है। मुख्यमंत्री बदलना है या नहीं, इसे लेकर किसी निर्णय पर पहुंचने से पहले कांग्रेस सियासी नफा-नुकसान का आंकलन कर रही होगी। यही वजह है कि अब छत्तीसगढ़ कांग्रेस को लेकर भी बैठकों का दौर जारी है। कभी टीएस सिंहदेव राहुल गांधी से मिलते हैं तो कभी बघेल गुट को दिल्ली बुलाया जाता है। फिलहाल, कांग्रेस छत्तीसगढ़ का असली बाजीगर भूपेश बघेल को मानती है या फिर टीएस सिंहदेव को, यह देखने वाली बात होगी, क्योंकि आज कांग्रेस हाईकमान ने बघेल को दिल्ली बुलाया है।
बहरहाल, राज्य में अभी के जो सियासी हालात बयां कर रहे हैं, उससे यह संकेत मिलता है कि कांग्रेस भूपेश बघेल को मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाकर कोई जोखिम नहीं लेना चाहेगी। 2018 में जब से कांग्रेस की सरकार बनी है, तभी से भूपेश बघेल और टीएस सिंह देव के बीच झगड़ा बरकरार है। हालांकि, टीएस सिंहदेव ने कभी सचिन पायलट और सिंधिया की तरह खुलकर बगावत नहीं की। मगर अब जब बघेल के सीएम की कुर्सी पर बने हुए ढाई साल हो गए हैं, तो ऐसे में टीएस सिंह गुट का कहना है कि कांग्रेस को अब मुख्यमंत्री बदल देना चाहिए।
यह बात ठीक है कि सिंहदेव मुख्यमंत्री पद पर दावेदारी जता रहे हैं। मगर आगामी चुनावों और अन्य राज्यों में पार्टी के आंतरिक कलह को देखते हुए कांग्रेस ओबीसी मुख्यमंत्री को बदलने का जोखिम नहीं लेना चाहेगी। भूपेश बघेल एक ओबीसी नेता हैं। इन्हें अभी हटाने का मतलब है कि सिर्फ छत्तीसगढ़ ही नहीं, बल्कि अन्य राज्यों में भी गलत संदेश जाएगा। इतना ही नहीं, कांग्रेस पर हमला करने को हमेशा आतुर भाजपा को एक और मौका मिल जाएगा। देशभर में भाजपा खुद ही ओबीसी समुदाय के चेहरों को प्रमोट करती दिख रही है। साथ ही ओबीसी जनगणना को लेकर एक अलग ही चर्चा देशभर में हो रही है। ऐसे में अगर कांग्रेस छत्तीसगढ़ में ओबीसी चेहरा को हटाकर सवर्ण को मुख्यमंत्री बनाती है तो फिर कांग्रेस के लिए और मुसीबत ही खड़ी हो जाएगी।
2018 में चुनाव जीतने से पहले तक छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल और टीएस सिंह देव की जोड़ी को जय-वीरू की जोड़ी कहा जाता था। मगर चुनाव के परिणाम आने के बाद से ही रिश्ते उलझने लगे। कुर्सी पाने की चाहत में दोनों के बीच में सियासी दूरियां बढ़ती ही गईं। जून में भूपेश बघेल सरकार के ढाई महीने पूरे होने के बाद एक जिन्न सामने आया, जिसमें टीएस सिंहदेव के समर्थकों की दलील है कि छत्तीसगढ़ में ढाई-ढाई मुख्यमंत्री का फॉर्मूला तय हुआ था। भूपेश बघेल मुख्यमंत्री के तौर पर ढाई साल पूरे कर चुके हैं, इसलिए अब सिंहदेव को मुख्यमंत्री बनाया जाए। लेकिन बीते ढाई साल में जिस तरह से बघेल ने छत्तीसगढ़ में काम किया है और पिछड़े, दलित समुदायों के लिए योजनाओं का ऐलान किया है, ऐसे में उनकी स्वीकार्यता बढ़ती ही जा रही है।
मगर टीएस सिंहदेव को भी दुखी कर कांग्रेस कोई जोखिम नहीं लेना चाहेगी। ऐसे में बीच का रास्ता निकलाते हुए और सिंहदेव को मनाने के लिए पार्टी सरकार और संगठन में उनका कद बढ़ाने की संभावनाओं पर विचार कर सकती है। बता दें कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और टीएस सिंह देव की कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से लंबी मुलाकात हुई थी। करीब तीन घंटे चली इस बैठक में तय किया गया था, इस विवाद पर अंतिम फैसला कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी लेंगी। इसलिए, भूपेश बघेल की सोनिया गांधी से मुलाकात को काफी अहम माना जा रहा है।