रायपुर : भाजपा के नवनियुक्त प्रदेशाध्यक्ष किरण देव दो दिवसीय दिल्ली दौरे के बाद रायपुर पहुंचे। यहाँ मीडिया से चर्चा में उन्होंने कहा कि आगामी लोकसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ से 11 की 11 सीटों जीतना ही एकमात्र लक्ष्य है। राज्य में भाजपा सरकार है। सरकार में जो लोग हैं, वह सभी संगठन के प्रमुख पदों में काम कर चुके हैं। लिहाजा सत्ता और संगठन में बेहतर तालमेल रहेगा। छत्तीसगढ़ की जनता ने भाजपा को जनादेश दिया है, उस जनादेश का सम्मान होगा, भाजपा का प्रत्येक कार्यकर्ता मोदी की गारंटी को पूरा करने वचनबद्ध है।
उन्होने कह कि छत्तीसगढ़ सरकार ने मोदी की गारंटी पर काम करना शुरू कर दिया है। 25 दिसम्बर को किसानो दो साल का बकाया बोनस राशि भुगतान का निर्देश जारी हो चूका है। इसी तरह पहली कैबिनेट में लोकसभा राज्य के 18 लाख गरीब परिवार को आवास देने के काम को प्राथमिकता में रखा है, आने वाले दिनों में महतारी वंदन योजना प्रभावशील होगी। सरकार की ने मोदी की गारंटी पर काम शुरू कर दिया है, भाजपा छत्तीसगढ़ इकाई भी आने वाले समय में कदम से कदम मिलाकर केंद्र और राज्य की योजनाओं को जनता के बीच ले जाएगी।
कांग्रेस का आंतरिक मामला
कांग्रेस ने प्रदेश प्रभारी कुमारी सैलजा को हटा दिया है, उनके स्थान पर सचिन पायलट को नया प्रभारी बनाया गया है, इस पर प्रतिक्रिया देते हुए श्री देव ने कहा कि यह कांग्रेस का आंतरिक मामला है, उनके संगठनात्मक ढांचा में बदलाव हो रहा है, इस पर कुछ बोलना ठीक नहीं है। कांग्रेस के मामले में वैसे भी अब बोलने के लिए कुछ बचा नहीं है।
जल्द ही विभिन्न पदों पर होंगी नियुक्तियां
श्री देव ने कहा कि प्रदेशाध्यक्ष का कार्यभार संभालने के बाद जल्द ही कार्यकारिणी व संगठन के विभिन्न पदों पर नियुक्ति की जाएगी। इसके लिए प्रदेश प्रभारी ओम माथुर, सहप्रभारी नितिन नबीन, क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जम्वाल, प्रदेश महामंत्री (संगठन) पवन साय समेत पूरा भाजपा का नेतृत्व विचार-मंथन कर रहा है। सत्ता, संगठन के बीच तालमेल के सवाल पर श्री देव ने दो टूक कहा कि पूर्व प्रदेशाध्यक्ष विष्णुदेव साय राज्य के मुख्यमंत्री हैं, उपमुख्यमंत्री की कमान भी निवृत्तमान प्रदेशाध्यक्ष अरूण साव और प्रदेश महामंत्री रहे विजय शर्मा संभाल रहे हैं। इसके अलावा प्रदेश महामंत्री रहे केदार कश्यप और ओपी चौधरी सरकार के कैबिनेट मंत्री हैं। इस तरह जितने भी सत्ता के केंद्र बिन्दु हैं, सभी संगठन के विभिन्न दायित्वों में रह चुके हैं। इसलिए सत्ता और संगठन के बीच तालमेल कैसा होगा? यह सवाल अब अप्रासंगिक हो चुका है।