रायपुरः क्या उत्तर प्रदेश की अगड़ा-पिछड़ा की राजनीति की राह पर छत्तीसगढ़ की राजनीति चल पड़ी है? क्या छत्तीसगढ़ में भी कुछ ऐसा ही माहौल बनाने की योजना है ? क्या छत्तीसगढ़ में भी यूपी से उठा विवाद फ़ायदा दे सकता है? इन सभी सवालों का जवाब अगर आपको जानना है तो हमारी ये पूरी रिपोर्ट पढ़िए और समझिए कि कैसे अचानक छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से लेकर छत्तीसगढ़ सरकार में मंत्री तक रामचरितमानस और हिंदू पर बात करने लगे हैं.
यूपी में इन दिनों रामचरित मानस को लेकर बवाल छिड़ा हुआ है. इसके पीछे का गणित समझा जाए तो बड़े वोट बैंक को साधने की कोशिश दिखती है. लेकिन क्या इसी तरह छत्तीसगढ़ में भी समीकरण बन रहे हैं या बनाये जा रहे हैं. आइये समझते हैं. साल 2023 विधानसभा चुनाव से पहले कैसे आदिवासी और पिछड़ा वर्ग की तरफ़ इशारा करने वाले बयान देने की शुरुआत हुई है. पूरी कहानी समझिए.
रामचरित मानस से चुनावी वोट बैंक साधने की कोशिश
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सॉफ्ट हिंदुत्व को लेकर अपनी राजनीति में आगे बढ़ते दिखाई देते हैं. देश में कांग्रेस के एकमात्र मुख्यमंत्री हैं जिनके द्वारा छत्तीसगढ़ में बनाये गये कौशल्या माता मंदिर की चर्चा होती है. गाय , गोबर और गोमूत्र के अलावा राम वन गमन परिपथ जैसी योजना ये बताती है कि सीएम भूपेश बघेल ये जानते हैं कि अगर बीजेपी से मुक़ाबला करना है तो हिन्दुवादी छवि को साथ लेकर चलना होगा. लेकिन अचानक ऐसा क्या हुआ कि सीएम ने रामचरितमानस पर बयान देना शुरू कर दिया.
दरअसल छत्तीसगढ़ में चुनाव के लिए ओबीसी और आदिवासी फैक्टर सबसे बड़ा है. इन दोनों वर्गों को संतुष्ट कर के ही सत्ता की कुर्सी पर राजनेता बैठ सकते हैं. राज्य में भी यूपी की ही तरफ शतरंज खेल की तरह घोड़े की चल चली जा रही है. दो कदम आगे बढ़कर एक नई दिशा में छलांग लगाना. इसी तरह मुख्यमंत्री भूपेश बघेल लगातार सॉफ्ट हिंदू को अपनाते हुए ओबीसी वोट बैंक को साधने के लिए आगे बढ़ रहे हैं. दूसरी तरफ नॉन हिंदू के रास्ते कवासी लखमा चल रहे हैं. इसका छत्तीसगढ़ में बड़ा राजनीतिक मायने है इसे आज समझने की कोशिश करते हैं.
यूपी की राह पर छत्तीसगढ़ कांग्रेस
रामचरित मानस को लेकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का बयान आपको याद होगा. उन्होंने सॉफ्ट हिंदू के रास्ते रामचरित मानस पर विवेचना करने की बात कह दी. रायपुर हेलीपेड में मीडिया से बातचीत के दौरान कहा कि रामायण में जो अच्छी चीज उसे ग्रहण कर लिजिए. जो आपको नही जमता उसे छोड़ दीजिए. एक चौपाई में एक दोहा से कोई फर्क नहीं पड़ता है. भूपेश बघेल का मानना है कि रामचरित मानस का विवेचना करिए और जो सही लगता है उसे ग्रहण करिए जस का तस ग्रहण करने की आवश्यकता नहीं है.
कवासी लखमा ने कहा- हिंदू और आदिवासी अलग अलग है
इसके अलावा मुख्यमंत्री के बयान के अगले ही दिन राज्य के बड़े आदिवासी नेता और आबकारी मंत्री कवासी लखमा का बयान आता है. उन्होंने हिंदू धर्म और आदिवासियों को अलग कर दिया है. उनका मानना है कि हिंदू और आदिवासियों के रीति रिवाज अलग होते हैं.
शनिवार को रायपुर के सर्किट हाउस में कवासी लखमा ने मीडिया से कहा कि हम लोग आदिकाल में रहने वाले लोग हैं. हम लोग जंगल में रहते हैं. हम पूजापाठ करते हैं. हिंदू अलग करता है और हम लोग अलग करते हैं. आदिवासी अगर शादी करता है तो गांव के पुजारी से पास जाते हैं. हम कोई पंडित से पूजा नहीं करते हैं. इसलिए हम लोग हिंदू से अलग हैं. हिंदू और आदिवासियों रीतिरिवाज अलग अलग है. जहां पहाड़ है जहां धरती है जंगल में रहने वाला है आदिवासी है.
इसका छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में क्या असर होगा
आपको बता दें कि छत्तीसगढ़ में 40 प्रतिशत से अधिक ओबीसी वोट बैंक है. 30 प्रतिशत से अधिक आदिवासी वोट बैंक है और 13 प्रतिशत से अधिक अनुसूचित जाति का वोट बैंक है. इस आंकड़े अंदाजा लगाया जा सकता है कि इन वर्गों पर जिस पार्टी का विश्वास हो उसी पार्टी के पास सत्ता की चाबी होगी. कहा कि ये भी जा रहा है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का सॉफ्ट हिंदुत्व ओबीसी वोट बैंक को खींचेगा और मंत्री कवासी लखमा आदिवासी वोट बैंक को साधने की कोशिश कर रहे हैं.
यूपी में क्या हो रहा है?
दरअसल पिछले 15 दिनों से यूपी में समाजवादी पार्टी अगड़ा – पिछड़ा की राजनीति में डूबी हुई है. पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने जिसे पार्टी के भीतर बड़ा पद दिया वहीं रामचरित मानस पर बैन लगाने की मांग कर रहे हैं. इससे ये समझा आता है कि स्वामी प्रसाद मौर्य राज्य में पिछड़ा को साधने में जुटे हैं और अखिलेश यादव मौनी बाबा की तरह तमाशा देख रहे हैं. यूपी की वोट बैंक की बात करे तो 85 प्रतिशत पिछड़े है और अगड़े में 15 प्रतिशत. इस लिए इस रणनीति को पिछड़े वोट बैंक को साधने की कोशिश मानी जा रही है.
इस राजनीतिक गणित पर बीजेपी का क्या कहना है?
बीजेपी नेता गौरीशंकर श्रीवास ने कांग्रेस और समाजवादी पार्टी को एक ही डीएनए बताया है. उन्होंने कहा कि दोनों पार्टी का डीएनए लगभग एक ही है. राजनीति करने का पैटर्न भी लगभग एक जैसा ही है. यहां के आदिवासी और ओबीसी वर्ग के हितों के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है. छत्तीसगढ़ कांग्रेस पिछले 4 साल से दोनों वर्गों को राजनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रही है. ये बहुत ही दुखद है. छत्तीसगढ़ में जाति की राजनीति के जहर की खेती की जा रही है. सामाजिक समरसता को बिगाड़ने की कोशिश कर रही है.