अररिया: बिहार के अररिया जिले में पलासी प्रखंड के एक गांव में दरवाजे तक बाराती और दूल्हे को आने की राह में पानी की धार रोड़ा बनी हुई था तो ग्रामीणों ने रातोंरात पानी की धार के ऊपर चचरी का पुल ही बना डाला। कोई गाड़ी पुल के ऊपर से गुजर नहीं सकती थी तो दूल्हे राजा को बाइक से चचरी पार करवाकर दरवाजे तक ले जाया गया। दूल्हा के साथ बाराती भी चचरी पुल से पानी को पार कर गांव पहुंचे और शादी में शामिल हुए।
शादी के लिए रातोंरात बनाये गए चचरी पुल (बांस का पुल) का यह किस्सा है अररिया के पलासी प्रखंड के अंतर्गत चौरी पंचायत के फुलसरा गांव का। गांव में जाने के लिए सीधी कोई सड़क नहीं है। गर्मी और सर्दी के मौसम में जहां धार के सूखने पर ग्रामीण जहां सूखे धार से पैदल या गाड़ी से आर-पार कर जाते हैं। वहीं बरसात के मौसम में धार में पानी रहने के कारण लोगों को आर पार करने के लिए छोटे-छोटे नाव या फिर धार में बांस को गाड़ कर बांस के सहारे आरपार करते थे।
कोई सीधी सड़क नहीं होने की वजह से गांव में शादी समारोह नहीं के बराबर होता है। ग्रामीण दूसरे शहरों में ही जाकर अपनी बेटी को ब्याहने की रस्मों को मजबूरी में पूरी करते हैं। इसी बीच गांव के बटेश झा ने अपनी बेटी राखी कुमारी की शादी फारबिसगंज प्रखंड के रमई गांव के अमरेंद्र झा से तय की। शादी को तिथि से लेकर सारी तैयारी पूरी कर ली गयी, लेकिन वधू पक्ष के लोगों के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गयी बारातियों समेत दूल्हे राजा को दरवाजे तक लाना।
आम दिनों में बांस बल्लियों के सहारे आवागमन करने वाले ग्रामीणों ने तय किया कि दूल्हे समेत बारातियों को दरवाजे तक लाया जाए। बस फिर क्या था ग्रामीणों ने धार के ऊपर रातोंरात बांस का चचरी पुल बना डाला और उसी चचरी पुल को बाइक से पारकर अपनी दुल्हनियां के पास जा पहुंचा।
जब बारात आई तो धीरे-धीरे बाराती भी चचरी पार कर दरवाजे तक पहुंच कर शादी के गवाह बन बैठे। रमई से सवारी गाड़ियों के सहारे बारात फुलसरा गांव तक पहुंची और फिर चचरी पार कर बारात और दूल्हा, बटेश झा के दरवाजा तक आ गई।