रायपुर: छत्तीसगढ़ में समाज कल्याण विभाग में हुए 1000 करोड़ के घोटाले में केंद्रीय मंत्री रेणुका सिंह का मंत्री पद खतरे में पड़ता नजर आ रहा है। सीबीआई रेणुका सिंह को फर्स्ट पार्टी बनाकर शेष अन्य 12 लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार, धोखाधड़ी, सरकारी दस्तावेजों में कूटरचना और आपराधिक षड्यंत्र को लेकर अपराध दर्ज कर सकती है। इन्ही धाराओं में दो अन्य नौकरशाहों की भी छुट्टी हो सकती है। सूत्रों के अनुसार सीबीआई ने रेणुका सिंह के खिलाफ अपराध दर्ज करने को लेकर केंद्र सरकार से काननूी राय मांगी है। सीबीआई के एक ज्वाइंट डायरेक्टर ने बिलासपुर हाईकोर्ट के फैसले की प्रतिलिपि अपने लीगल सेल को भेजा है। वहीं सीबीआई एक-दो दिन में अपराध दर्ज कर सकती है। सीबीआई के अफसर समाज कल्याण विभाग में दबिश देने की तैयारी में है।
हाईकोर्ट ने उसे 7 दिनों के भीतर एफआईआर दर्ज करने कहा है, लेकिन तीन बीत चुके हैं। इस मामले को लेकर याचिकाकर्ता के वकील देवर्षि ठाकुर के मुताबिक कि वरिष्ठ आईएएस अधिकारिओं ने सुनियोजित रूप से इस घोटाले को अंजाम दिया था। रेणुका सिंह ने ही यह सोसायटी एनजीओ बनाई और अफसरों ने पूरे प्लांड तरीके से इसे अंजाम दिया। यह पूरा ब्रेन गेम है। फर्जी लोगों के नाम पर वेतन निकाला गया, फर्जी तरीके से मशीनें खरीदी गईं। ये सारे दस्तावेज कोर्ट में प्रस्तुत है।
एक चीफ जस्टिस की गाड़ी के लिए खर्च किए 31 लाख:
समाज कल्याण विभाग के अफसरों ने सरकारी पैसों पर डाका डालने में सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन एक चीफ जस्टिस को भी नहीं बख्शा। उनके वाहन के व्यय के नाम पर 31 लाख रुपए सरकारी खाते से निकाल लिया। संजीव रेड्डी नाम के एक गुमनाम डाॅक्टर को एकमुश्त 24 लाख का भुगतान कर डाला। संजीव रेड्डी कौन है, जांच में अफसरों ने चुप्पी साध ली। तत्कालीन मुख्य सचिव अजय सिंह ने पिछले साल हाईकोर्ट में 500 पन्नों की रिट सौंपी थी। उसमें उन्होंने स्वीकार किया है इस मामले में लगभग 200 करोड़ रुपए की गड़बड़ी हुई है। जांच रिपोर्ट में उन्होंने हाईकोर्ट को बताया कि संस्थान में 21 लोगों को अधिकारी, कर्मचारी बताया गया। जबकि, वास्तव में वहां एक कर्मचारी काम करता पाया गया। मुख्य सचिव ने यह भी कहा है कि चार करोड़ रुपए समाज कल्याण के अफसरों ने बिना अनुमोदन लिए प्रायवेट लोगों के खातों में ट्रांसफर कर दिया।
सीएस ऐसे बने पार्टी:
याचिकाकर्ता कुंदन सिंह ने हाईकोर्ट में जस्टिस मनिंद्र मोहन श्रीवास्तव की कोर्ट में रिट लगाई। केस की गंभीरता को देखते जस्टिस श्रीवास्तव ने उसे तत्कालीन चीफ जस्टिस अजय त्रिपाठी को भेज दिया। चीफ जस्टिस और जस्टिस प्रशांत मिश्रा के डबल बेंच ने रिट को पीआईएल में बदलकर मुख्य सचिव से जांच कर रिपोर्ट मांगी। सरकार ने प्रकरण की जांच करने के लिए जीएडी सचिव डा. कमलप्रीत सिंह को जांच अधिकारी बनाया। लेकिन, याचिकाकर्ता ने सीएस की बजाए सचिव से जांच करने पर आपत्ति कर दी। इसके बाद हाईकोर्ट सख्त होते हुए कहा कि सीएस जांच करके रिपोर्ट सौंपे। फिर, तत्कालीन सीएस पिछले साल विधानसभा चुनाव के दौरान अक्टूबर में कोर्ट पहुंचे। उन्होंने कोर्ट को बताया कि इस नाम की संस्था का वास्तव में कोई अस्तित्व नहीं है।
हर साल एक ही मशीन खरीदते रहे:
राज्य श्रोत निःशक्त जन संस्थान दिव्यांगों के कल्याण के लिए बनाया गया एक एनजीओ था। दस्तावेज बताते हैं कि, यह काग़ज़ी था, जिसे केंद्र सरकार से सीधे अनुदान मिला। इस पैसे को लूटने में समाज कल्याण विभाग के अफसरों ने कोई कसर नहीं छोड़ी। कागजों में हर साल एक ही मशीन को हर साल खरीदी गई और इसके एवज में 30 से 35 लाख रुपए निकाले गए। वे कौन सी मशीनें खरीदी गई और कहाँ उपयोग की गई, इसका उल्लेख नहीं मिलता। सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट के निर्देश पर जिन अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर कर जांच के लिए कहा गया, उनमें समाज कल्याण के एडिशनल डायरेक्टर पंकज वर्मा नाम शामिल है। पिछली सरकार ने पंकज को ही इस केस का ओएसडी बना दिया। ओएसडी के नाते पंकज वर्मा ने हलफनामा देते हुए जवाब देने के लिए कोर्ट से समय मांगा था।