सोहेल रजा
जगदलपुर: शनिवार को कलेक्टर एवं जिला रेडक्रॉस सोसायटी अध्यक्ष रजत बंसल की पहल पर बेंगलुरू कर्नाटक से गुमशुदा 80 वर्षीय बुजुर्ग अपने पोते के पास पहुंचेगी। लगभग एक वर्ष से कर्नाटक बेंगलुरू से बुजुर्ग माता अपने घर से निकल कर कहीं चली गई थी। गुमशुदा नानी की तलाश परिजन लगातार कर रहे थे। बुजुर्ग लॉकडाउन शुरू होने के दौरान मार्च माह में लवारिस स्थिति में बस्तर जिला के तोकापाल पहुंच गयी थी। जहां कलेक्टर बंसल के निर्देश पर बुजुर्ग माता को तत्कालीन एसडीएम माधुरी सोम द्वारा धरमपुरा स्थित आस्था निकुंज रेडक्रॉस वृद्धाश्रम में शिफ्ट करवाया गया था।
इसी दौरान अध्यक्ष रेडक्रॉस सोसायटी बंसल ने उपाध्यक्ष अलेक्जेंडर एम. चेरियन को निर्देशित किया कि बुजुर्ग माता के घर का पता कर उनको घर पहुंचाना है। जब शिफ्ट करवाया गया था तब से वो किसी से बात नहीं करती, हमेशा रोते रहती थी। धीरे-धीरे वृद्धाश्रम के अन्य माताआंे, प्रबंधक ठाकुर जी एवं अन्य से मिलने लगी। फिर कन्नड़ में अलेक्जेंडर चेरियन से बात करने में पता चला कि वो बेंगलुरू कर्नाटक की है और उनके सामान को खोजा गया तो एक आधा मिटा हुआ नम्बर मिला जिसे जोड़कर काल करने पर एक दो नम्बर में बात हुई और उनको माताजी के बारे में बताया गया।
जब एक नंबर में बात हई तो डरते हुए एक व्यक्ति ने कहा कि उनकी नानी लगभग एक साल से गुम हो गयी है। उनको वीडियो काॅल कर माता जी को दिखाया गया, तब उन्होनें माता जी को पहचान लिया। फिर उनसे पूछा गया तो व्यक्ति ने अपना परिचय के. सेन्दील, माता जी के पोता के रूप में बताया। उनसे कन्नड़ और हिन्दी में बात कर बताया गया कि वे अपनी माता को ले जाना चाहते हैं तो उसकी व्यवस्था कलेक्टर एवं अध्यक्ष के द्वारा कर दिया जाएगा। सेन्दील के. ने बताया कि वे कूली का काम करते हैं उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं हैं, इसलिए छत्तीसगढ़ आने मंे उन्हंे तकलीफ हो सकती है।
सेन्दील कुमार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने की जानकारी मिलते ही कलेक्टर रजत बंसल ने उपाध्यक्ष अलेक्जेंडर एम. चेरियन को निर्देश दिया कि माता जी को उनके घर तक निःशुल्क सकुशल पहंचाया जाए। अब माता जी को बेंगलुरू भेजने की तैयारी हो रही है।
उल्लेखनीय है कि लॉकडाउन में कलेक्टर एवं अध्यक्ष रजत बंसल के मानवियता के कारण गुमशुदा को घर तक पहुचाने का ये तीसरा प्रकरण हैं। कर्नाटक के ही शिवप्रकाश जो लगभग दस वर्ष से लापता थे उनको भी लॉकडाउन के दौरान कोरनटाईन वार्ड में तीन महीने तक रखकर रेडक्रॉस द्वारा घर का पता खोजा गया था और कर्नाटक मे उनके घर निजी बस में भेजा गया था