DURG | पत्नी ने नहाने से इंकार किया तो पति ने खुदवा दिया तालाब, लोग इसे प्यार की निशानी मानते हैं, जल देवता का है निवास

दुर्ग: छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में एक तालाब को लोग प्यार की निशानी मानते हैं। यह तालाब कभी सूखता नहीं है। गांव के लोगों के लिए यह तालाब साक्षात जल देवता है। जल संरक्षण की मिसाल भी है। लगभग 3 सौ साल पुराना 49 एकड़ में फैले इस तालाब का पानी जितना साफ है, उतनी ही दिलचस्प इसकी कहानी है। एक मालगुजार की कहानी, जिसकी खूबसूरत पत्नी ने जिद कर दी, जब तक खुद का तालाब नहीं खुदेगा वह नाहएगी नहीं। पत्नी की जिद पर मालगुजार ने यह तालाब खुदवाया। 

दुर्ग जिले के कुम्हारी के पास स्थित है ग्राम पंचायत कंडरका..। दो हजार की आबादी वाला गांव। गांव के पूर्व जनपद सदस्य राजेंद्र साहू बताते हैं कि 2 सौ साल पहले अंग्रेज जमाने में यहां गुरमीन पाल गड़रिया की मालगुजरी थी। धन संपदा भरपूर होने के कारण गुरमीन को गौटिया भी कहा जाता था। गुरमीन अंग्रेजों के लिए लगान वसूलता था। गुरमीन का बनाया तालाब निस्तारी के अलावा लगभग 200 हेक्टेयर खेतों की प्यास भी बुझाता है। इस तालाब की वजह से आसपास के गांवों का वाटर लेबल भी डाउन नहीं होता। पानी की पतली धार से तालाब बनाने का रास्ता मिला और मालगुजार ने ग्रामीणों और राजस्थान के गड़रियों से तालाब खुदवा दिया। दो महीने की मेहनत से तालाब तैयार हुआ, जिसमें नहाकर मालगुजार की पत्नी ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी की थी। 

गौटिया की पत्नी ने ली तालाब बनाने की प्रतिज्ञा
ग्रामीण बताते हैं कि गुरमीन की पत्नी बहुत खूबसूरत थी। वो नहाने के लिए रोज पास के चेटुवा गांव के तालाब जाया करती थी। एक दिन वह बाल में मिट्टी लगाकर नहाने गई। एक पत्थर पर बैठकर वह नहा रही थी। तभी चेटुवा गांव की महिलाओं ने उसे ताना मार दिया कि इतने बड़े मालगुजर की बीवी के पास नहाने के लिए खुद का तालाब नहीं है। मालगुजार की बीवी नाराज हो गई। उसने प्रतिज्ञा ली कि जब तक खुद का तालाब नहीं खुदेगा वह बाल नहीं धोएगी। बीवी के इस संकल्प से परेशान गुरमीन ने तालाब के लिए जगह खोजना शुरू किया। 

कुछ इस तरह मिला पानी और खुदवाया तालाब
छतीसगढ़ में तब पानी मिलना रेत के ढेर में सुई खोजने के बराबर था। भीषण गर्मी का दिन, गुरमीन सहित गांव के कुछ लोग तालाब के लिए जगह तलाश रहे थे, तभी खबर आई कि गांव का एक भैंस दो दिन से गायब है। तालाब के लिए जगह के साथ भैस की तलाश शुरू हुई। भैस गांव के पूरब दिशा में मिली। कीचड़ से लिपटी हुई। गांव के बाहर एक डीह था, जहां चितावर (लंबी घास) भी था। गांव के लोग समझ गए कि पानी यही है। उस जगह पर कुदाल पड़ते ही पानी की महीन धार फूट पड़ी। ग्रामीण उसे पाताल से निकली धार कहते हैं। इसी धार की वजह से यह तालाब कभी सूखता नहीं है। 

ग्रामीणों व राजस्थान के गड़रियों ने खोदा तालाब
राजेंद्र साहू बताते हैं कि तालाब खोदने का काम शुरू किया गया। उस वक्त राजस्थान से भेड़ चराने वाले गड़रिया बड़ी संख्या में छत्तीसगढ़ आए थे। गुरमीन गौटिया ने सबको काम पर लगा दिया। दो महीने में 49 एकड़ में बड़ा तालाब खुद गया। तब गुरमीन की बीवी ने बाल धोए। गौटिया ने सबको भरपूर पैसे दिए। उसने तालाब के चारों तरफ आम के पेड़ लगवा दिए। तब से यह तालाब जल देवता बन गया। तालाब आज तक नहीं सूखा। पहले लोग इसी का पानी पीते थे। 3 सौ साल पुराना तालाब अब निस्तारी व खेतों की सिंचाई के काम आता है। इसका पानी आज भी बेहद साफ रहता है। इस तालाब के लिए गुरमीन को लोग शिद्दत से याद करते हैं। यह तालाब भीषण अकाल के समय भी नहीं सूखता।

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