जोधपुर:
यू्एन की रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर साल 40% खाने-पीने की चीजें बर्बाद हो जाती हैं। साथ ही देश में 88 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का भोजन नष्ट हो जाता है, जबकि रोज लाखों लोगों के सामने भूखे सोने की नौबत होती है।
ऐसे में जोधपुर शहर में बड़ी पहल हुई। जूठा नहीं छोड़ना शहर में जनता की मुहिम बन गई है। सबसे बड़ी पहल समाज और केटरर्स ने खास तरह की थालियां बनवाकर की है। इन थालियों पर बड़े अक्षरों में लेजर प्रिंट से लिखवाया है- ‘कृपया जूठा न छोड़ें’। मुहिम इतनी तेजी से फैली कि एक महीने में ही 2 टन स्टील से ऐसी 10 हजार थालियां बनाई जा चुकी हैं।
शुरुआत श्री कुंथुनाथ जैन मंदिर से हुई:
पहली बार समदड़ी कस्बे के श्री कुंथुनाथ जैन मंदिर के जयंतीलाल पारेख ने ऐसी 1000 थालियां बनवाई थीं। इसकी प्रेरणा उन्हें महाराष्ट्र में ऐसी ही थालियां देखकर मिली। पारख कहते हैं कि थालियों पर लिखे आग्रह का मनावैज्ञानिक असर होता है। लोग सोच-विचार कर प्लेट में भोजन लेते हैं। राजस्थान स्टेनलैस स्टील यूटेंसियल एसोसिएशन के सचिव राजेश जीरावला बताते हैं कि यहां स्टील उद्यमियों ने जैन भोजनालय की थाली को सोशल मीडिया पर डाला था। इसके बाद लगातार ऑर्डर आने लगे। एक महीने में और 10 हजार थालियां बनेंगी। एक दर्जन बड़े कैटरर्स ने ऑर्डर दिए हैं। वहीं, सुमेरपुर और अन्य शहरों से भी ऐसी थालियों के ऑर्डर आए हैं।
जूठा खाकर जूठन कम करवाने का प्रयोग:
जोधपुर में जनवरी में माहेश्वरी ग्लोबल कन्वेंशन एंड एक्सपो में पहल हुई थी। एक लाख लोगों के भोजन का इंतजाम था। भोजन की बर्बादी रोकने के लिए एक विशेष टीम थी, जो जूठा न छोड़ने का निवेदन कर रही थी। टीम के सदस्य ओमप्रकाश लोहिया बताते हैं कि निवेदन नहीं मानने वालों की प्लेटों से बचा हुआ भोजन कार्यकर्ताओं ने खाया, ताकि उन्हें गलती का अहसास हो।
घांची समाज ने बनाई 50-50 महिला-पुरुषों की टीम:
बीती 16 जून को घांची समाज के 885वें स्थापना दिवस पर महाप्रसादी का आयोजन था। करीब 12 हजार लोगों के भोजन का इंतजाम था। यहां भी भोजन की बर्बादी रोकने के लिए विशेष इंतजाम किए गए थे। कार्यक्रम के संयोजक किशनलाल बोराणा ने बताया कि कोई जूठा न छोड़े इसलिए 50 महिलाओं और 50 पुरुषों की टीम बनाई गई थी। टीम ने एक-एक व्यक्ति से अनुरोध किया।
जूठा छोड़ने वालों का नाम स्टेज से अनाउंस किया:
शहर में टीचर राहुल राठी और विनिता भूतड़ा की शादी में तय किया गया था कि किसी को जूठा नहीं छोड़ने देंगे। इसके लिए चार स्तर पर व्यवस्थाएं की। आयोजन स्थल पर बोर्ड लगाए थे- उतना ही लें थाली में कि बिल्कुल न जाए नाली में। सबसे बड़ी बात यह है कि इसके बावजूद भी जो जूठा छोड़ रहे थे उनके नाम स्टेज से सभी के लिए अनाउंस किए गए। असर ये हुआ कि खाना न के बराबर बर्बाद हुआ।