रायपुरः छत्तीसगढ़ में इस साल विधानसभा चुनाव होने वाले है. कांग्रेस सत्ता में बनी रहने के लिए अपने सभी विधायकों को ग्राउंड में उतार रही है. दूसरी तरफ बीजेपी फिर से सत्ता की कुर्सी पाने के लिए ग्राउंड में कांग्रेस को घेरना चाहती है. लेकिन आखिर वो क्या मुद्दा होगा जो मैदान से सत्ता की कुर्सी तक पहुंचने का रास्ता बनेगी. चलिए आज छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े चुनावी मुद्दे को जानते हैं.
चुनाव जीतने के लिए सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा
दरअसल इसी साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने वाले है. चुनाव से पहले के स्थिति में कांग्रेस प्रदेश में मजबूत नजर आ रही है. क्योंकि राज्य में पिछले 4 साल में हुए 5 उपचुनाव में कांग्रेस को ही जीत मिली है और बीजेपी को करारी हार मिली है. इससे कांग्रेस का कॉन्फिडेंस बढ़ा हुआ है. लेकिन बीजेपी ने भी पूरी ताकत से लड़ने का मन बना लिया है तो कांग्रेस के लिए ये सफर आसान नहीं होगा. क्योंकि बढ़ते अपराध को लेकर बीजेपी ने बिलासपुर में पिछले साल बड़ा आंदोलन किया है. इसके साथ बेरोजगारी भत्ता के लिए रायपुर में बड़ी रैली की गई है और अब पीएम आवास और कर्मचारियों के नियमितीकरण के मामले में प्रदर्शन करने की तैयारी में हैं.
धर्मांतरण रह सकता है ट्राइबल इलाकों में बड़ा मुद्दा
छत्तीसगढ़ में अबतक धर्मांतरण के मुद्दे पर बीजेपी आक्रामक मोड में है. नारायणपुर के बवाल के बाद बीजेपी ने कांग्रेस को घेरना भी शुरू कर दिया है. बुधवार को रायपुर में हुए बीजेपी के धरना प्रदर्शन में सभी नेताओं ने धर्मांतरण के मुद्दे पर कांग्रेस सरकार को घेरा है. राजनीतिक पंडितों का कहना है कि धर्मांतरण का मुद्दा ट्राइबल इलाकों में ही है. मैदानी इलाकों में इसका असर बहुत कम है. लेकिन पूरे प्रदेश में आरक्षण का विवाद सबसे बड़ा मुद्दा हो सकता है.
आरक्षण हो सकता है गेम चेंजर मुद्दा
दरअसल 19 सितंबर 2022 में हाईकोर्ट ने 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण को रद्द कर दिया. इससे राज्य के आदिवासियों को मिल रहे 32 प्रतिशत आरक्षण घटकर 20 प्रतिशत हो गया. इससे राज्य के आदिवासी समाज नाराज हो गए. इस मामले में सरकार की तरफ से विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर आदिवासी आरक्षण 32 प्रतिशत करने का विधेयक पारित कर दिया और विधेयक राज्यपाल को भेज दिया गया. लेकिन विवाद यहां थमा नहीं। यहां से दोगुनी रफ्तार में प्रदेशभर में फैल गया.
आरक्षण बढ़ाने के विधेयक को राज्यपाल से नहीं मिली मंजूरी
कांग्रेस सरकार ने आदिवासी ही नहीं ओबीसी और जनरल का भी आरक्षण बढ़ा दिया. सरकार ने ओबीसी आरक्षण 27 प्रतिशत और ईडब्ल्यूएस का 4 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला किया. इसके बाद राज्य का कुल आरक्षण 76 प्रतिशत हो गया. वर्गवार आरक्षण की बात करें तो अनुसूचित जाति को 13 प्रतिशत, ओबीसी- 27, एसटी- 32 और ईडब्ल्यूएस को 4 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला किया गया है. लेकिन सरकार के इस विधेयक को राज्यपाल ने एक महीने से मंजूरी नहीं दी है. इससे राज्य में बीजेपी और कांग्रेस की मैदानी लड़ाई शुरू हो गई है.
आरक्षण दिला कर चुनाव जीतने की तैयारी
आरक्षण पर कांग्रेस और बीजेपी की जुबानी जंग अब मैदान-ए- जंग पर उतर आई है. नए साल के शुरुआत के साथ कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने आरक्षण पर एक दूसरे को घेरने के लिए मैदान में उतर आई है. कांग्रेस ने 3 जनवरी को आरक्षण पर चुनावी साल का सबसे बड़ा प्रदर्शन किया है. मंच से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आरक्षण की लड़ाई लड़ने का आवाहन किया है. इसके अलाव पीसीसी चीफ मोहन मरकाम ने मंच से चुनावी आगाज भी कर दिया. उन्होंने बीजेपी को 15 से शून्य पर लाने की हजारों की भीड़ में एलान कर दिया. इससे अब तय माना जा रहा है की आरक्षण पर कांग्रेस चुनावी साल में बीजेपी को पीछे छोड़ने की तैयारी में है.
आरक्षण लागू करने के लिए मैदान में उतरी बीजेपी
इसके अलावा बीजेपी भी आरक्षण पर ही कांग्रेस सरकार को घेरने की रणनीति बना रही है. 4 जनवरी को बीजेपी ने मुख्यमंत्री निवास घेराव करने की कोशिश की और पुलिस के साथ झुमाझटकी हुई. पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह ने सरकार से जल्दी आरक्षण लागू करने की मांग की है और आरक्षण को लेकर सरकार पर भ्रम फैलाने का आरोप लगाया है. यानी बीजेपी ने भी आरक्षण के मामले को अपने चुनावी मुद्दे में शामिल कर लिया है.अब आने वाले वक्त में बीजेपी और कांग्रेस दोनो ही पार्टी आरक्षण पर एक दूसरे को घेरते हुए दिखाई दे सकते है.