सोरगांव: राज्य सरकार आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बस्तर में आदिवासी बालक बालिकाओं की शिक्षा के लिए हर साल करोड़ों रुपए खर्च करने का दावा करती है, जिसके तहत इन आदिवासी बालक-बालिकाओं के लिए छात्रावास के साथ ही भोजन की व्यवस्था और शिक्षा की व्यवस्था की जाती है. लेकिन बस्तर जिले के सोरगांव में आश्रम अधीक्षिका ने आदिवासी बालिका आश्रम में इस कदर का भ्रम फैलाया है कि इस आश्रम में बालिकाएं जाने से डरती हैं. वहीं इन बच्चों के नाम पर हर महीने अधीक्षिका शासन के लाखों रुपए डकार जाती है.
दरअसल अधीक्षिका ने पूरे गांव में यह भ्रम फैलाया है कि आश्रम में भूत प्रेत का साया है और यहां बच्चियां नहीं रह सकतीं, जिसके चलते यहां आदिवासी बालिकाएं जाना भी चाहें तो अधीक्षिका उन्हें दहशत में डालकर छात्रावास ही नहीं आने देती. लेकिन अधीक्षिका बकायदा हर महीने अपने आश्रम में 93 बालिकाओं की दर्ज संख्या बताकर शासन के लाखों रुपए कई सालों से डकार रही है, हालांकि अधीक्षिका का कहना है कि इस पूरे खेल में वे अकेली नहीं है बल्कि आदिवासी विभाग के कर्मचारी और अधिकारी भी संलिप्त हैं.
भूत प्रेत के नाम पर राशि का कर रहे गबन
बस्तर जिले के भानपुरी इलाके में मौजूद सोरगांव के 100 सीटर आदिवासी बालिका छात्रावास में पिछले 4 सालों से अधीक्षिका द्रौपदी यादव पदस्थ हैं, कांकेर के छलियामारी में हुए बड़ी घटना के बाद सरकार ने यह नियम बनाया कि कन्या आश्रम में महिला कर्मचारियों के अलावा कोई भी पुरुष नहीं रह सकता और ना ही बिना अनुमति के अंदर प्रवेश कर सकता है, बावजूद इसके इस आश्रम की अधीक्षिका ने ना सिर्फ भूत प्रेत के नाम पर बच्चियों को डरा रखा है बल्कि सरकार के सारे नियम और कानून को ताक में रखकर अपने पति को भी साथ में इस आश्रम में रखने का काम किया है.
इस छात्रावास की बालिकाओं ने बताया कि कुछ बच्चे जो मजबूरन छात्रावास में रहते हैं उनके साथ शराब के नशे में अधीक्षिका के पति द्वारा बदसलूकी की जाती है. यही नहीं बच्चों के लिए अपशब्द का इस्तेमाल भी किया जाता है. कई बार ग्रामीणों की शिकायत के बावजूद भी अधीक्षिका नियमों का उल्लंघन कर अपने पति को हॉस्टल में साथ में रखती है. इधर आदिवासी विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक आदिवासी बालिकाओं की शिक्षा के लिए और आश्रम में रहने और भोजन की व्यवस्था के लिए एक आदिवासी बच्चे पर शासन हर महीने 1 हजार रुपये खर्च करता है.
सोरगांव के 100 सीटर छात्रावास में केवल 17 से 20 बच्चे ही ठहरते हैं लेकिन बाकी बालिकाओं के जाली दस्तखत कर अधीक्षिका अपने जॉइंट खाते में आश्रम में 93 बच्चों की संख्या के हिसाब से हर महीने हजारों रुपए डकार जाती है. इस तरह बीते 3 सालों में अधीक्षिका ने शासन से लाखों रुपए गबन कर लिए हैं, वहीं बालिकाओं के परिजन बताते हैं कि वह अपनी बच्चियों को आश्रम में भेजना तो चाहते हैं लेकिन अधीक्षिका ने भूत प्रेत के नाम पर बच्चियों को डराकर रखा है. यही नहीं अगर गांव की कुछ बच्चियां आश्रम में रुक भी जाती हैं तो उन्हें ना ही भरपेट भोजन दिया जाता है और ना ही रहने के लिए कोई सामान. उन्हें साबुन से लेकर तेल तक नहीं दिया जाता. कुल मिलाकर पिछले 4 सालों से अधीक्षिका आदिवासी बालिकाओं की शिक्षा व्यवस्था की पूरी तरह से धज्जियां उड़ा रही है.
अधीक्षिका ने कबूली गबन की बात
हालांकि इस मामले में अधीक्षिका द्रौपती यादव का कहना है कि शासन से जो बालिकाओं के लिए राशि मिलती है उन पैसों का वह सिर्फ अकेले ही गबन नहीं कर रही है, बल्कि इसमें आदिवासी विभाग के कर्मचारी से लेकर अधिकारी भी शामिल हैं. अधीक्षिका ने खुद माना है कि दर्ज 93 बच्चों की संख्या में मुश्किल से 30 से 35 बच्चे आश्रम आते हैं. साथ ही उसने यह भी कहा कि आश्रम में भूत प्रेत का साया है जिसको लेकर कई बार पूजा पाठ भी किया जा चुका है.
जांच के बाद होगी दोषियों पर कार्यवाही
इधर इस मामले में बस्तर कलेक्टर चंदन कुमार का कहना है कि यह मामला बेहद गंभीर है, अगर भूत प्रेत के नाम पर शासन के पैसों का दुरुपयोग किया जा रहा है तो जरूर जांच कमेटी बनाकर इस पूरे मामले की जांच की जाएगी और जांच के बाद जो भी अधिकारी- कर्मचारी इसमें दोषी होंगे उनके खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जाएगी.