खरगे की जीत से ज्यादा शशि के हार के चर्चे, आखिर कैसे शशि थरूर चुनाव हार गए? आइए जानते हैं

नई दिल्ली: कांग्रेस के नए अध्यक्ष पद को लेकर उठापठक खत्म हो गई है। मल्लिकार्जुन खरगे ने कांग्रेस सांसद शशि थरूर को 6,825 वोटों से मात दे दी है। शशि थरूर ने एक प्रेस नोट जारी कर अपनी हार भी स्वीकार कर ली है। चुनाव नतीजे आने के बाद भी लोग मल्लिकार्जुन खरगे की जीत से ज्याद शशि थरूर के हार को लेकर चर्चा कर रहे हैं।

ऐसे में आज हम आपको बताएंगे कि आखिर कैसे शशि थरूर चुनाव हार गए? क्यों वो कांग्रेस के अध्यक्ष नहीं बन पाए? थरूर आगे क्या करेंगे? आइए जानते हैं…

पहले जान लीजिए चुनाव में क्या हुआ?
कांग्रेस के नए अध्यक्ष के लिए 17 अक्तूबर को वोटिंग हुई थी। 80 साल के मल्लिकार्जुन खड़गे के सामने 66 साल के शशि थरूर टक्कर दे रहे थे। 9,497 कांग्रेस नेताओं ने इसके लिए वोट किया। बुधवार को हुई मतगणना में खरगे ने शशि थरूर को भारी मतों से हरा दिया। मल्लिकार्जुन खरगे को 7,897 वोट मिले, जबकि शशि थरूर को महज 1,072 वोट मिले।

इस बार गांधी परिवार की तरफ से कोई भी सदस्य अध्यक्ष पद की रेस में शामिल नहीं था। ऐसा पिछले 24 साल में पहली बार हुआ है। इससे पहले सीताराम केसरी ऐसे अध्यक्ष थे, जो गांधी परिवार से नहीं थे। कांग्रेस मुख्यालय पर खरगे की जीत का जश्न मनाया जा रहा है। खरगे के समर्थक ढोल नगाड़ों के साथ उनकी जीत का जश्न मना रहे हैं। शशि थरूर ने भी खरगे को जीत की बधाई दी। थरूर ने ट्वीट कर लिखा, ‘ये काफी सम्मान और बड़ी जिम्मेदारी की बात है। मैं खरगे जी के लिए उनके इस काम में सफलता की कामना करता हूं।’

तो कैसे हार गए शशि थरूर?
इसे समझने के लिए हमने राजनीतिक विश्लेषक प्रो. अजय कुमार सिंह से बात की। उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस में गांधी परिवार की सबसे ज्यादा अहमियत है, या यूं कहें कि गांधी परिवार के बिना कोई फैसला नहीं हो सकता तो भी ठीक है।’

प्रो. सिंह के अनुसार, ‘गांधी परिवार पहले अशोक गहलोत को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाना चाहता था, लेकिन राजस्थान में हुए सियासी घटनाक्रम के चलते फैसला बदलना पड़ा। आनन-फानन में पार्टी ने मल्लिकार्जुन खरगे को आगे बढ़ा दिया। एक तरह से खरगे को पार्टी ने आधिकारित तौर पर उम्मीदवार बनाकर उतारा था। ऐसे में थरूर उनके सामने कहां टिकने वाले थे।’

आगे प्रो. सिंह ने थरूर की हार के तीन बड़े कारण बताए हैं।

  1. गांधी परिवार की पसंद नहीं थे: शशि थरूर भले ही केरल से कांग्रेस के सांसद हैं, लेकिन वह गांधी परिवार की पसंद नहीं थे। ऐसे में चाहते हुए भी कांग्रेस के कई नेता उनका समर्थन नहीं कर पाए।
  2. थरूर के बेबाक बोल : शशि थरूर के बयान उन्हें चर्चा में रखते हैं। कई बार वह कुछ ऐसा भी बोल देते हैं, जिसे कांग्रेस को डिफेंड करना मुश्किल होता है। इसलिए भी कांग्रेस में होते हुए भी गांधी परिवार से दूर बने रहे।
  3. पार्टी पर पूरी तरह से कंट्रोल कर सकते थे : कांग्रेस के कई नेताओं और खुद गांधी परिवार को भी इसका डर था। जिस तरह से शशि थरूर ने अध्यक्ष पद के लिए अपने चुनावी वादे किए थे, उसे देखकर लगता था कि वह पार्टी पर पूरी तरह से कंट्रोल करना शुरू कर देंगे। ऐसा होने पर गांधी परिवार और पार्टी के कई दिग्गजों को दिक्कत हो सकती थी।

शशि थरूर के बारे में भी जान लीजिए
शशि थरूर का जन्म नौ मार्च 1956 को लंदन में हुआ था। पिता चंद्रन थरूर और मां का नाम सुलेखा मेनन था। दोनों मलयाली परिवार से आते थे। थरूर का परिवार मूल रूप से केरल के पल्लकड़ का है। पिता ने 25 साल से भी ज्यादा समय तक द स्टेट्समैन के जरिए विज्ञापन प्रबंधक के तौर पर काम किया। थरूर की दो बहनें शोभा और स्मिता हैं।

शशि थरूर के चाचा परमेश्वरन थरूर रीडर डाइजेस्ट के फाउंडर थे। थरूर जब दो साल के थे, तब उनके माता-पिता भारत लौट आए। यहां 1962 में उन्होंने यरकौड के मोंटफोर्ट स्कूल में एडमिशन लिया। इसके बाद मुंबई और फिर कलकत्ता में पढ़ाई की। 1975 में थरूर ने सेंट स्टीफन कॉलेज, दिल्ली से स्नातक कंप्लीट किया।

यहां थरूर स्टूडेंट यूनियन के प्रेसिडेंट भी रहे। इसके बाद थरूर एमए की पढ़ाई करने के लिए अमेरिका चले गए। 1978 में थरूर ने इंटरनेशनल रिलेशंस एंड अफेयर्स में पीएचडी की। थरूर ने संयुक्त राष्ट्र संघ में भी कई अहम भूमिकाएं निभाई हैं।

2009 में पहली बार केरल के तिरुवनंदपुरम से उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। तब संयुक्त राष्ट्र संघ में उनके अनुभव को देखते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की कैबिनेट में विदेश राज्यमंत्री बनाया गया था। इसके बाद 2012 में उन्हें प्रमोशन देते हुए कैबिनेट मंत्री का दर्जा दे दिया गया और केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई।

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