बलौदाबाजारः कहा जाता है कि इस मंदिर में भाई और बहन एक साथ नहीं जा सकते. इसके पीछे अनोखी कथा है. इस मंदिर की मुख्य आकर्षण भव्य प्राचीन शिव मंदिर है. आसपास रहने वाले बुजुर्ग बताते हैं कि इस मंदिर का निर्माण रात में किया गया. यह निर्माण कार्य लगभग 6 महीने तक लगातार चला. ग्रामीण बताते हैं कि इस मंदिर के प्रधान शिल्पी का नाम नारायण था. वह जनजाति समुदाय का था. उसी के नाम पर ही इस गांव का नामकरण किया गया. बताया जाता है कि प्रधान शिल्पी नारायण रात के समय पूर्णत रू निर्वस्त्र होकर मंदिर निर्माण करते थे.
उनकी पत्नी भोजन लेकर निर्माण स्थल पर आती थी. जब मंदिर के शिखर निर्माण का समय आया तो एक अजीब वाकया हुआ. एक दिन किसी कारणवश पत्नी की जगह उसकी बहन भोजन लेकर आ गई. उसे देखकर नारायण का सिर शर्म से झुक गया. उसने मंदिर के कंगूरे से नीचे कूदकर अपनी जान दे दी.
किंवदंती है कि मंदिर के प्रधान शिल्पी नारायण और उनकी बहन के किस्से सुनने के बाद इस प्राचीन मंदिर में पूजन और दर्शन के लिए भाई – बहन एक साथ नहीं जाते. भाई-बहन का एक साथ नहीं जाने का एक कारण दीवारों पर उकेरी गई मैथुन मूर्तियां भी हैं.
इस नगर कि प्राचीनता यहां के मंदिरों में स्पष्ट देखी जा सकती है. यहां स्थित शिव मंदिर अपनी स्थापत्य कला के लिए मशहूर है. स्थानीय लोगों की मानें तो , इस मंदिर का निर्माण कलचुरी कालीन राजा द्वारा 7वीं से 8वीं शताब्दी के बीच कराया गया था, मंदिर कि कारीगरी काफी उन्नत है.
इस पूर्वाभिमुखी शिवमंदिर का निर्माण लाल और काले बलुवा पत्थरों से किया गया. पत्थरों को तराश कर बेहतरीन से बेहतरीन प्रतिमा को उसमें उकेरा गया है. यह उस समय की उन्नत कारीगरी को दर्शाता है. इस मंदिर क देखने पूरे देश से लोग आते हैं. यह विदेशों में भी प्रसिद्ध है.