नई दिल्ली: पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के सीनियर नेता गुलाम नबी आजाद ने राजनीति से संन्यास लेने के संकेत दिए हैं। एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कहा कि कांग्रेस सहित सभी राजनीतिक दल लोगों को बांटने का काम करते हैं, जबकि सिविल सोसाइटी का मुश्किल समय में काफी अहम योगदान होता है। उन्होंने कहा कि मैं अक्सर यह सोचता हूं कि राजनीति से रिटायर होकर समाज सेवा में लग जाऊं।
हमें समाज में लाना है बदलाव
लोगों से बात करते हुए कांग्रेस नेता ने कहा कि हमको एक समाज में बदलाव लाना है, कभी-कभी मैं सोचता हूं और कोई बड़ी बात नहीं है कि अचानक आप समझे कि हम रिटायर हो गए और समाज सेवा में लग गए। उन्होंने कहा कि मैं राजनीतिक भाषण नहीं दूंगा क्योंकि भारत में राजनीति इतनी गंदी हो गई है कि लोगों को कभी-कभी शक होता है कि हम इंसान भी हैं या नहीं।
राजनीतिक दल 24*7 लोगों को बांटते हैं
सामूहिक नेतृत्व के लिए दबाव बनाने के लिए जी23 के सदस्य के रूप में चुनावी हार के बाद हाल ही में कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात करने वाले वरिष्ठ नेता ने यह भी कहा कि राजनीतिक दल धर्म, जाति के आधार पर लोगों के बीच, 24*7 विभाजन पैदा करने के लिए काम करते हैं। कांग्रेस नेता ने रविवार को जम्मू में एक कार्यक्रम में कहा, चाहे मेरी पार्टी हो या कोई अन्य क्षेत्रीय या राष्ट्रीय पार्टी, मैं उनमें से किसी को भी माफ नहीं कर रहा हूं। नागरिक समाज को एक साथ रहना चाहिए और बुराइयों के खिलाफ लड़ना चाहिए।
समाज में बुराइयों के लिए राजनेताओं को ठहराया जिम्मेदार
आजाद ने अपने भाषण में समाज में बुराइयों के लिए राजनेताओं को जिम्मेदार ठहराया। उन्हें समाज में बदलाव लाने वाले राजनीतिक दलों के दावों पर संदेह था। उन्होंने कहा कि श्हमने लोगों को क्षेत्र, गांव, शहरों, हिंदू, मुस्लिम, शिया और सुन्नियों, दलित और गैर-दलित, पिछड़े वर्गों में बांट दिया है। मुझे लगता है अब कोई इंसान नहीं बचा। देश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण पर अफसोस जताते हुए कांग्रेस नेता ने राजनीतिक दलों पर आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि श्भारत में राजनीति इतनी बदसूरत हो गई है कि कभी-कभी किसी को संदेह करना पड़ता है कि हम इंसान हैं या नहीं।
राजनीति से ऊपर उठ कर भी हो सुख-दुख में शामिल
उन्होंने कहा कि हम प्यार से रहकर भी तो वही कर सकते हैं। आचार्य कृपलानी और उनकी पत्नी दिन में अलग पार्टी के लिए काम करते थे लेकिन रात में मिसेज कृपलानी ही खाना देती थीं, वही घर चलाती थीं, लेकिन राजनीतिक पार्टी अलग है। क्या हम यह अपनी पार्टियों के साथ नहीं कर सकते हैं। हम अपनी पार्टियां हम अपनी-अपनी पार्टी को दे दें लेकिन शादी, ब्याह, मरने जीन में हम इकट्ठे हो। एक दूसरे के घर आ जाएं। क्या हम इकट्ठा होकर यह नहीं कर सकते हैं।