जशपुर: हौंसले अगर बुलंद हों तो रास्ते की कोई रुकावट आपका रास्ता नहीं रोक सकती। छत्तीसगढ़ के जशपुर के ऐसे ही बुलंद हौंसले वाले एक शख्स हैं, जो जन्म से ही दिव्यांग थे। लेकिन अपने बुलंद हौसलों से इन्होंने आधी उम्र पार करने के बाद अपनी दिव्यांगता को मात देकर अपने पैरों से खड़े हुए और अब ये बैसाखी का सहारा छोड़कर ये बुलेट पर फर्राटे भरते नजर आते हैं। कुनकुरी निवासी रामकुशल वस्त्रकार पेशे से ये मोटर बैंडिंग के मिस्त्री हैं। कुनकुरी शहर में ये अपनी दुकान का संचालन करते हैं। ये जन्म से ही दिव्यांग थे और पैरों से 60 प्रतिशत दिव्यांग होने की वजह से ये चल फिर नहीं पाते थे।
बैसाखी की मदद से ये अपना जीवन जी रहे थे, लेकिन औरों को अपने पैरों पर खड़े देखकर इन्होंने भी दिव्यांगता से मुक्ति पाने की ठानी और इसके लिए कोशिश करना शुरू किया। इसी बीच इनको पता चला की महाराष्ट्र में दिव्यांगों का अच्छा इलाज होता है। जिसके बाद ये महाराष्ट्र के अकोला पहुंचे और वहां इन्होंने डॉक्टरों से मिलकर अपनी परेशानी बताई। डॉक्टरों के परामर्श के बाद इनका इलाज शुरू हुआ। दोनों पैरों के इलाज में लगभग 3 साल लगे।
कठिन एक्सरसाइज से सफलता
3 सालों में इनको नियमित तौर पर काफी ज्यादा एक्सरसाइज करना था और डॉक्टरों की सलाह का पालन करना था। अपने कठिन परिश्रम और बुलंद हौसलों से 43 साल की उम्र में ये पूरी तरह से ठीक हो गए और अपने पैरों पर खड़े हो गए और बिना किसी मदद से आसानी से चलने फिरने लगे। अब रामकुशल वस्त्रकार न सिर्फ पैदल चल रहे हैं। बल्कि अब इन्होंने बुलेट चलाना सीख लिया है और अब ये सड़को पर बुलेट से फर्राटे भर रहे हैं। अब इनको चलने फिरने में कोई परेशानी नहीं है। इनको देखकर लोग आश्चर्चयचकित हैं और इनके मजबूत हौंसलो की तारीफ कर रहे हैं। वहीं रामकुशल वस्त्रकार ने ठीक होने के बाद अपनी 60 प्रतिशत दिव्यांगता प्रमाण पत्र को जशपुर कलेक्टर को सरेंडर कर दिया है।
रामकुशल का कहना है की ठीक होने के बाद वह दिव्यांगता प्रमाण पत्र का कोई फायदा नहीं लेना चाहते हैं। इसलिए उन्होंने दिव्यांग प्रमाण पत्र को सरेंडर किया है। आज भी देश में लाखों लोग दिव्यांगता की वजह से अपने सपनो को साकार नहीं कर पा रहे हैं। उनके लिए रामकुशल जैसे लोग एक मिसाल बनकर सामने आए हैं, जिनके बुलंद हौसलों से और लोगो को प्रेरणा लेने की जरूरत है।