बालोद: छत्तीसगढ़ के बालोद जिले में डायन का एक प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर में एक मूर्ति स्थापित है, जिसे छत्तीसगढ़ बोली में लो परेतिन दाई नाम से जानते हैं। स्थानीय ग्रामीण मंदिर को लेकर कई रोचक जानकारियां देते हैं। ग्रामीण बताते हैं कि पहले यह मंदिर नीम वृक्ष के नीचे सिर्फ चबूतरानुमा था, लेकिन धीरे-धीरे मान्यता और प्रसिद्धि बढ़ती गई और जन सहयोग से मंदिर का निर्माण कर दिया गया। मंदिर का निर्माण डायन देवी को अर्पित ईंटों से कराया गया हैं।
गांव की मुख्य सड़क से ही लगा डायन देवी का मंदिर है। ग्रामीण बताते हैं कि देवी के प्रति आस्था या लोगों में डर ऐसा है जानकारी के बाद भी अगर कोई यहां से सर झुकाए आगे बढ़ा तो उसे आगे परेशानी का सामना जरूर करना पड़ता है। ग्रामीण रोशन बताते हैं कि पहले कई लोग जानकारी के बाद भी अनदेखा कर आगे बढ़ जाते थे। ऐसे लोगों को आगे रास्ते में कुछ न कुछ परेशानी जरूर होती थी। इसके बाद अब लोग बगैर सर झुकाए आगे नहीं बढ़ते है।
गांव की मुख्य सड़क से ही लगा डायन देवी का मंदिर है। ग्रामीण बताते हैं कि देवी के प्रति आस्था या लोगों में डर ऐसा है जानकारी के बाद भी अगर कोई यहां से सर झुकाए आगे बढ़ा तो उसे आगे परेशानी का सामना जरूर करना पड़ता है। ग्रामीण रोशन बताते हैं कि पहले कई लोग जानकारी के बाद भी अनदेखा कर आगे बढ़ जाते थे। ऐसे लोगों को आगे रास्ते में कुछ न कुछ परेशानी जरूर होती थी. इसके बाद अब लोग बगैर सर झुकाए आगे नहीं बढ़ते हैं।
ग्रामीणों का मानना है कि इस मंदिर में बगैर दान किए कोई भी मालवाहक वाहन आगे नहीं बढ़ता है तो उसके साथ दुर्घटना हो जाती है। मंदिर के सामने से गुजरना है तो वहां कुछ भी दान करना अनिवार्य है। आप मालवाहक वाहन से जा रहे हैं तो वाहन में जो भी सामान भरा है, उसमें से कुछ-न-कुछ चढ़ाना अनिवार्य है। चाहे ईंट, पत्थर, पैरा, हरी घास, मिट्टी, सब्जी, भाजी ही न हो।
डायन देवी के मंदिर में ईंट का चढ़ाई बड़े पैमाने पर होता है. ग्रामीण बताते हैं कि मंदिर में ईंट इतनी ज्यादा संख्या में चढ़ता है कि चढ़ावे के ईंट से ही गांव में दूसरे विकास निर्माण कार्य जैसे चबूतरा, नाली निर्माण जैसे काम कर लिए जाते हैं।
गांव के यदुवंशी (यादव और ठेठवार) मंदिर में बिना दूध चढ़ाए निकल जाते हैं तो दूध फट जाता है। ऐसा कई बार हो चुका है। ग्रामीण ने बताया कि यह मंदिर काफी पुराना और बड़ी मान्यता है। गांव में भी बहुत से ठेठवार हैं, जो रोज दूध बेचने आसपास के इलाकों में जाते हैं। यहां दूध चढ़ाना ही पड़ता है। जान बूझकर दूध नहीं चढ़ाया तो दूध खराब (फट) हो जाता है।