कोरबा: सोमवार को होली है। रंग-गुलाल, पिचकारी की धार और फाग गीतों से सजा होली का त्यौहार भला किसे अच्छा नहीं लगता। पर क्या आपको पता है हमारे प्रदेश में एक ऐसा भी गांव है, जहां होली नहीं मनाई जाती। यहां के बच्चों ने न रंग देखा है, न ही कभी पिचकारी चलाई है। होली का त्यौहार यहां अंधविश्वास के चलते नहीं मनाया जाता।
कोरबा के खरहरी गांव में तीन पीढ़ियों से गांव में होली नहीं खेली गयी। 100 साल से गांववालों का यही मानना है कि यदि गांव में रंग खेला गया तो बीमारी या महामारी हो जाएगी। यदि होलिका दहन किया गया तो गांव में आग लग जाएगी। गांव के एक बुजुर्ग ने बताया कि उनके पैदा होने के पहले से ही गांव में होली नहीं खेली जाती। बचपन में उन्होंने सुना था कि एक व्यक्ति ने होली खेली तो उसके शरीर में बड़े-बड़े दाने हो गए थे। ऐसे ही कई बातें गांव में प्रचलित हैं इसलिए रंग को गांव से दूर ही रखा गया है।
कुछ समाज सेवी संस्थाएं और अंधविश्वास दूर करने वाले समाजसेवी इस गांव के लोगों को समझाने का प्रयास कर रही हैं।