नई दिल्ली: मदर्स डे की आपने तमाम कहानियां पढ़ी होंगी। जाना होगा कि इस दिन की शुरुआत कैसे हुई? कैसे यह दिन मांओं को समर्पित किया गया? कैसे इस दिन को उनके त्याग के लिए यादगार बनाया गया? कैसे इस दिन मांओं को सराहा गया और उनके समर्पण को धन्यवाद दिया गया? लेकिन क्या आप जानते हैं कि जिस महिला ने इस दिन की शुरुआत की थी, उसने ही इसे खत्म करने की कोशिश भी की। यकीनन उनकी यह कोशिश सफल नहीं रही, लेकिन उनका परिवार और रिश्तेदार यह दिन नहीं मनाते हैं। क्या थी इसकी वजह? क्यों इस दिन की शुरुआत करने वाली ही इसके विरोध में उतर आई? इन तमाम सवालों से रूबरू होते हैं इस रिपोर्ट में…
इस वजह से चुना गया मई का दूसरा रविवार
हर कोई जानता है कि हर साल मई महीने के दूसरे रविवार को मदर्स डे यानी मातृ दिवस मनाया जाता है। करीब 110 साल से यह परंपरा चल रही है। इस दिन की शुरुआत एना जार्विस ने की थी। उन्होंने यह दिन अपनी मां को समर्पित किया और इसकी तारीख इस तरह चुनी कि वह उनकी मां की पुण्यतिथि 9 मई के आसपास ही पड़े। गौर करने वाली बात है कि इस बार मदर्स डे 9 मई को ही पड़ रहा है।
क्या थी मदर्स डे की असल थीम?
दरअसल, मदर्स डे की शुरुआत एना जार्विस की मां एन रीव्स जार्विस करना चाहती थीं। उनका मकसद मांओं के लिए एक ऐसे दिन की शुरुआत करना था, जिस दिन अतुलनीय सेवा के लिए मांओं को सम्मानित किया जाए। हालांकि, 1905 में एन रीव्स जार्विस की मौत हो गई और उनका सपना पूरा करने की जिम्मेदारी उनकी बेटी एना जार्विस ने उठा ली। हालांकि, एना ने इस दिन की थीम में थोड़ा बदलाव किया। उन्होंने कहा कि इस दिन लोग अपनी मां के त्याग को याद करें और उसकी सराहना करें। लोगों को उनका यह विचार इतना पसंद आया कि इसे हाथोंहाथ ले लिया गया और एन रीव्स के निधन के तीन साल बाद यानी 1908 में पहली बार मदर्स डे मनाया गया।
इस वजह से मदर्स डे का विरोध करने लगीं एना
दुनिया में जब पहली बार मदर्स डे मनाया गया तो एना जार्विस एक तरह से इसकी पोस्टर गर्ल थीं। उन्होंने उस दिन अपनी मां के पसंदीदा सफेद कार्नेशन फूल महिलाओं को बांटे, जिन्हें चलन में ही ले लिया गया। इन फूलों का व्यवसायीकरण इस कदर बढ़ा कि आने वाले वर्षों में मदर्स डे पर सफेद कार्नेशन फूलों की एक तरह से कालाबाजारी होने लगी। लोग ऊंचे से ऊंचे दामों पर इन्हें खरीदने की कोशिश करने लगे। यह देखकर एना भड़क गईं और उन्होंने इस दिन को खत्म करने की मुहिम शुरू कर दी।
कहां तक पहुंची एना की मुहिम?
मदर्स डे पर सफेद कार्नेशन फूलों की बिक्री के बाद टॉफी, चॉकलेट और तमाम तरह के गिफ्ट भी चलन में आने लगे। ऐसे में एना ने लोगों को फटकारा भी। उन्होंने कहा कि लोगों ने अपने लालच के लिए बाजारीकरण करके इस दिन की अहमियत ही घटा दी। साल 1920 में तो उन्होंने लोगों से फूल न खरीदने की अपील भी की। एना अपने आखिरी वक्त तक इस दिन को खत्म करने की मुहिम में लगी रहीं। उन्होंने इसके लिए हस्ताक्षर अभियान भी चलाया, लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी और 1948 के आसपास एना इस दुनिया को अलविदा कह गईं।
एना के रिश्तेदार नहीं मनाते यह दिन
मदर्स डे के बाजारीकरण के खिलाफ एना की मुहिम का असर भले ही पूरी दुनिया पर न हुआ हो, लेकिन उनके परिवार के लोग व रिश्तेदार यह दिन नहीं मनाते हैं। दरअसल, कुछ साल पहले मीडिया को दिए एक इंटरव्यू में एना की रिश्तेदार एलिजाबेथ बर ने बताया था कि उनकी आंटियों और पिता ने कभी मदर्स डे नहीं मनाया, क्योंकि वे एना का काफी सम्मान करते थे। वे एना की उस भावना से काफी प्रभावित थे, जिसमें कहा गया था कि बाजारीकरण ने इस बेहद खास दिन के मायने ही बदल दिए।