नई दिल्ली:
पीएम नरेंद्र मोदी और अरुण जेटली के बीच गहरा रिश्ता रहा है। यह अलग बात है कि 1970 के दशक में जब ये दोनों पहली बार मिले थे, तो कई मुद्दों को लेकर इनके बीच मतभेद था। उस वक्त जेटली दिल्ली में पढ़ रहे थे और मोदी संघ के कार्यों में जुटे थे। इसके बाद 1990 के दशक में इन दोनों की मुलाकात हुई। साल 2016 में एक अखबार को दिए साक्षात्कार में खुद अरुण जेटली ने बताया था कि नब्बे के दशक में उनका भाव संगठनात्मक क्षमता के मसले पर मोदी से टकराया था। हालांकि दोनों के बीच आत्मीयता पूर्ण रिश्ते बने रहे।
जेटली के बताए रास्ते पर चले मोदी
यही वजह रही कि 2002 के गुजरात दंगों के बाद जेटली ने मोदी को बताया था कि उन्हें न्यायपालिका और चुनाव आयोग के सामने कैसे अपनी बात रखनी है। दंगों के आरोपों से किस तरह खुद को बचाते हुए अदालती लड़ाई लड़नी है, ये मूल मंत्र मोदी को अरुण जेटली ने दिए थे। मोदी ने जब जेटली के बताए मार्ग पर चलना शुरू किया, तो फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। वे दंगों के आरोपों से भी मुक्त हुए और प्रधानमंत्री पद तक भी पहुंच गए।
जेटली जानते थे मोदी बनेंगे प्रधानमंत्री
जेटली ने आगे बताया कि 2011 में सबसे पहले उन्होंने अपने सहयोगियों से कहा कि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे। धीरे-धीरे यह बात आरएसएस और भाजपा के दूसरे नेताओं तक पहुंची तो कड़ी प्रतिक्रिया भी सामने आई। लेकिन जेटली अपनी बात पर कायम रहे। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी न केवल पीएम पद के उम्मीदवार घोषित हुए, बल्कि प्रधानमंत्री भी बन गए। वे मानते थे कि संचार कौशल एक संपत्ति है, दायित्व नहीं। इसमें यह अहम है कि क्या वह व्यक्ति अपने सहयोगियों की विचारधारा को साझा करता है या नहीं।
कर्मकांडी नहीं थे जेटली
उन्होंने कहा, मैं आर्थिक रूप से उदार हूं, लेकिन संप्रभुता, आतंकवाद और अलगाववाद से निपटने के मुद्दों पर रूढ़िवादी हूं। समलैंगिक अधिकारों के मुद्दे पर बोलने वाले भाजपा के चुनिंदा नेताओं में से वे एक थे। जाति और धर्म पर उन्होंने कहा, यह अपनी पसंद की स्वतंत्रता का मामला है। मेरे पास एक बड़ा दिल है और मेरे परिवार में भी जब बच्चे शादी करते हैं, तो हम जाति या समुदाय पर अधिक जोर नहीं देते। मेरी मां धार्मिक थी और मेरी पत्नी भी बहुत धार्मिक है। हमारे पास घर में एक मंदिर है, जिसमें कई देवता हैं, स्वर्ण मंदिर के चित्र भी हैं। मैं एक हिंदू हूं, लेकिन मैं कर्मकांडी नहीं हूं। मैं इसे औपचारिक कार्यों के तौर पर लेता हूं, लेकिन रीति-रिवाजों का पालन करता हूं।
लजीज खाने के थे शौकीन
पसंदीदा व्यंजनों के बारे में वे बताते हैं, मैं मूल रूप से भोजन का एक बड़ा प्रेमी रहा हूँ, लेकिन अब कई स्वास्थ्य बंदिशें हैं। मेरी प्राथमिकता उत्तर भारतीय भोजन की रही है। मुझे कश्मीरी, पंजाबी, पुरानी दिल्ली का खाना पसंद है। इसके अलावा मुझे गुजराती और दक्षिण भारत का नमकीन खाना भी बहुत भाता है। हालाँकि मुझे अंतरराष्ट्रीय खानपान ज्यादा पसंद नहीं है, लेकिन चीनी और थाई पकवान अच्छे लगते हैं। यहाँ तक कि हवाई जहाज में भी घर का बना खाना ले जाता हूं।
पढ़ाना अच्छा लगता था
जवाब देते हुए उन्होंने कहा, मैं कानून के क्षेत्र में आगे बढ़ता, मुझे विश्वविद्यालय में अध्यापन करना अच्छा लगता या मैं लेखन के क्षेत्र में भी जा सकता था।
वाजपेयी और प्रणब और ओबामा थे पसंद
समकालीन राजनीति के दो सबसे आकर्षक राजनेताओं की बाबत अरुण जेटली का कहना था कि वे अटल बिहारी वाजपेयी और प्रणब मुखर्जी को पसंद करते थे। इन दोनों की मुलाकात बहुत लंबे समय तक याद रही हैं। जब उनसे यह पूछा गया कि वे किस गैर भारतीय राजनेता की प्रशंसा करते हैं, तो जवाब मिला, बराक ओबामा। यह उनकी राजनीतिक टिप्पणी नहीं थी। उन्होंने कहा कि व्हाइट हाउस में क्या-क्या होता है, उससे इतर हटकर देखें तो बराक ओबामा ने बहुत साफ-सुथरा और नि:शक्त प्रशासन चलाया है। अमेरिका के किसी राष्ट्रपति ने उनके जैसा काम नहीं किया।
रिटायरमेंट के बाद पहाड़ों की सैर
जब आप रिटायर होंगे तो आप क्या करेंगे, इस पर जेटली का कहना था, मैं पहाड़ियों में सैर करना चाहता हूँ।दुनिया के तीन सबसे खूबसूरत स्थानों की यात्रा करूंगा।ऑस्ट्रिया, स्विट्जरलैंड और कश्मीर।मुझे ये तीन जगह बहुत पसंद हैं।